31-12-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"नव वर्ष पर बापदादा द्वारा दिया गया सलोगन- ‘निर्बलता हटाओ’"

अति स्नेही और समीप बच्चों के प्रति नव वर्ष के अवसर पर अव्यक्त बापदादा बोले:-

बापदादा, सदा हर कदम में, हर संकल्प में उड़ती कला वाले बच्चों को देख रहे हैं। सेकण्ड में अशरीरी भव का वरदान मिला और सेकण्ड में उडा।'' अशरीरी अर्थात् ऊंचा उड़ना। शरीर भान में आना अर्थात् पिंजड़े का पंछी बनना। इस समय सभी बच्चे अशरीरी भव के वरदानी उड़ते पंछी बन गये हो। यह संगठन स्वतन्त्र आत्मायें अर्थात् उड़ते पंछियों का है। सभी स्वतन्त्र हो ना? आर्डर मिले अपने स्वीट होम में चले जाओ तो कितने समय में जा सकते हो? सेकण्ड में जा सकते हो ना! आर्डर मिले अपने मास्टर सर्वशक्तिवान की स्टेज द्वारा, अपनी सर्वशक्तियों की किरणों द्वारा अंधकार में रोशनी लाओ, ज्ञान सूर्य बन अंधकार को मिटा लो, तो सेकण्ड में यह बेहद की सेवा कर सकते हो? ऐसे मास्टर ज्ञान सूर्य बने हो? जब साइन्स के साधन सेकण्ड में अंधकार से रोशनी कर सकते हैं तो हे ज्ञान सूर्य बच्चे, आप कितने समय में रोशनी कर सकते हो? साइन्स से तो साइलेन्स की शक्ति अति श्रेष्ठ है। तो ऐसे अनुभव करते हो कि सेकण्ड में स्मृति का स्विच आन करते अंधकार में भटकी हुई आत्मा को रोशनी में लाते हैं? क्या समझते हो?

सात दिन के सात घण्टे का कोर्स दे अंधकार से रोशनी में ला सकते हो वा तीन दिन के योग शिविर से रोशनी में ला सकते हो? वा सेकण्ड की स्टेज तक पंहुच गये हो? क्या समझते हो? अभी घण्टों के हिसाब से सेवा की गति है वा मिनट वा सेकण्ड की गति तक पहुँच गये हो? क्या समझते हो? अभी टाइम चाहिए वा समझते हो कि सेकण्ड तक पहुँच गये हैं? जो चैलेन्ज करते हो- सेकण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा प्राप्त करो, उसको प्रैक्टिकल में लाने लिए तैयार हो स्व-परिवर्तन की गति सेकण्ड तक पंहुची है? क्या समझते हो? पुराना वर्ष समाप्त हो रहा है, नया वर्ष आ रहा है, अभी संगम पर बैठे हो। तो पुराने वर्ष में स्व-परिवर्त न व विश्व-परिवर्तन की गति कहाँ तक पहुँची है? तीव्र गति रही? रिजल्ट तो निकालेंगे ना तो इस वर्ष की रिजल्ट क्या रही? स्व-प्रति, सम्बन्ध और सम्पर्क प्रति वा विश्व की सेवा प्रति। इस वर्ष का लक्ष्य मिला? जानते है ना- उड़ता पंछी वा उड़ती कला। तो इसी लक्ष्य प्रमाण गति क्या रही? जब सबकी गति सेकण्ड तक पहुँचेगी तो क्या होगा? अपना घर और अपना राज्य, अपने घर लौटकर राज्य में आ जायेंगे।

तो नये वर्ष में नया उमंग, हर संकल्प और सेकण्ड में हर कर्म में प्राप्ति के सिद्धि की नवीनता हो। अभी कल से क्या शुरू होगा? नया वर्ष तो होगा लेकिन क्या कहेंगे? नया वर्ष कहाँ से शुरू होता है? लौकिक में भी वन-वन से शुरू होगा ना! और आप क्या शुरू करेंगे? वह तो वन से शुरू होगा, आपका क्या रहेगा? ‘‘वन और विन''। हर संकल्प में विन अर्थात् विजय हो। हर दिन अपने मस्तक पर इस वर्ष का कौन-सा तिलक लगायेंगे? ‘‘विजय का तिलक''। सलोगन कौन-सा याद रखेंगे? ‘‘हम विजयी रत्न कल्प-कल्प के विजयी हैं। विजयी थे, विजयी हैं और सदा विजयी रहेंगे।'' ताज कौन-सा धारण करेंगे? ‘‘लाइट और माइट'' यह डबल ताज धारण करना। क्योंकि लाइट है और माइट कम है तो सदा सिद्धि स्वरूप नहीं हो सकते। लाइट के साथ माइट भी है तब ही सदा विजयी बन जायेंगे। लाइट और माइट के डबल ताजधारी।

कंगन कौन-सा पहनेंगे? कंगन भी जरूरी है ना? कौन-सा कंगन अच्छा लगता है? प्यूरिटी का कंगन तो है ही। लेकिन इस विशेष वर्ष का नया कंगन कौन-सा पहनेंगे? (किसी ने कहा सहयोग, किसी ने कहा संस्कार मिलन का, अनेक उत्तर मिले) यह तो सारी बाँह ही कंगनों से भर जायेगी।

इस वर्ष का यही विशेष कंगन बाँधना कि- ‘‘सदा उत्साह में रहना है और उत्साह में सर्व को सदा आगे बढ़ाते रहना है।'' न स्वयं का उत्साह कम करना है, न औरों का कराना है। इसके लिए सदा कंगन को मजबूत रखने के लिए व टाइट रखने के लिए एक ही बात सदा याद रखना- ‘‘हर बात में चाहे स्व के प्रति, चाहे औरों के प्रति आगे बढ़ने और बढ़ानें के लिए मोल्ड होना ही रीयल गोल्ड बनना है।'' अच्छा-कंगन भी पहन लिया। अभी विशेष सेवा का लक्ष्य क्या रखेंगे? जैसे आजकल की गवर्नमेन्ट हर वर्ष का विशेष कार्य बनाती है, उस गवर्नमेन्ट ने तो अपंगों का बनाया था। आप क्या करेंगे? जैसे बाप की महिमा में गायन करते हैं- ‘‘निर्बल को बल देने वाला''। जैसे स्थूल में निर्बल आत्माओं को साइन्स के साधनों से बलवान बना देते हैं। लंगड़े को चलाने की शक्ति दे देते हैं। इसी प्रकार हरेक कमजोर को शक्ति के साधन दे देते हैं। ऐसे आप सभी भी, चाहे ब्राह्मण परिवार में, चाहे विश्व की आत्माओं में हर आत्मा को, निर्बल को बल देने वाले महाबलवान बनो। जैसे वह लोग नारा लगाते हैं- गरीबी हटाओ, वैसे आप निर्बलता को हटाओ। ‘‘हिम्मत और मद'' निमित्त बन बाप से दिलाओ। तो इस वर्ष का विशेष नारा कौन-सा हुआ? ‘‘निर्बलता हटाओ''। तब ही जो सलोगन मिला सदा उत्साह दिलाने का, वह प्रैक्टिकल में ला सकेंगे। समझा, नये वर्ष में क्या करना है?

डबल फारेनर्स को न्यू ईयर का महत्व ज्यादा रहता है। तो न्यू ईयर का महत्व इस महानता से सदा रहेगा। 82 का वर्ष महत्व मनाओ फिर 83 में क्या करेंगे? 83 में इस सर्व महानता द्वारा सिद्धि स्वरूप, सिद्धि पाने वाले, सर्व कार्य सिद्ध होने वाले, सर्व को सिद्धि प्राप्त करने की सेकण्ड की विधि बताना। ऐसा सिद्धि का वर्ष मनाओ। कार्य भी सर्व सिद्ध हों, संकल्प भी सिद्ध हो और स्वरूप भी सदा सिद्धि स्वरूप हो। तब ही प्रत्यक्षता और जय-जयकार का नारा लगेगा। साईस सदा सिद्धि स्वरूप नहीं होती। लेकिन आप सभी सदा सिद्धि स्वरूप हो। (आज लाइट बीच-बीच में बहुत आती-जाती थी) आपके राज्य में यह खिट-खिट होगी? आपके स्वीट होम में तो इसकी आवश्यकता ही नहीं है। तो अभी अपने स्वीट होम और स्वीट राजधानी को समीप लाओ अर्थात् स्वयं जाओ। समझा क्या करना है? अच्छा!

ऐसे सदा एक की याद में रहने वाले, एक के साथ सर्व का सम्बन्ध जुड़वाने वाले, सदा एक रस स्थिति में रहने वाले, ऐसे बाप समान, बापदादा को स्वयं और सेवा द्वारा प्रत्यक्ष करने वाले, प्रत्यक्ष फल स्वरूप, अति स्नेही और समीप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

(विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात)

नैरोबी पार्टी:-

सर्व बच्चे अति स्नेही और सहयोगी आत्मायें हैं। ऐसे अनुभव करते हो? जो स्नेही होगा वह सहयोगी बनने के सिवाए रह नहीं सकता। वैसे भी लौकिक में देखो- जहाँ स्नेह होता है वहाँ तन-मन-धन से स्वत: ही न्योछावर हो जाते हैं अर्थात् सहयोगी बन जाते हैं। तो आप सभी बाप के अति स्नेही हो इसलिए सर्व प्रकार के सहयोगी आत्मायें भी हो। तो बापदादा अति स्नेही और सहयोगी बच्चों को देख खुश होते हैं। जैसे बच्चे बाप को देख खुश होते हैं, तो बाप बच्चों को देखकर और ही पदमगुणा खुश होते हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कि बच्चा कितना तकदीरवान है। हरेक के तकदीर की रेखा कितनी महान है। वे आजकल के महात्मा तो आप लोगों के आगे कुछ भी नहीं हैं, नामधारी हैं और आप प्रैक्टिकल काम करने वाले हो। तो क्या से क्या बन गये हो और क्या बनने वाले हो? यह खुशी रहती है? धरती पर रहते हो या तख्त पर रहते हो? धरती पर तो नहीं आते? धरती को छोड़ चुके ना? बाप को बुलाते हैं- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...। और बाप कहते हैं- छोड़ भी दे धरती का सिंहासन और दिल का सिंहासन ले लो। तो सभी ने यह सिंहासन ले लिया है, फिर वापस अपने धरती पर तो नहीं आ जाते? धरती की आकर्षण तो नहीं खींचती है? क्योंकि धरती पर रहकर तो देख लिया है ना कि धरती की आकर्षण कहाँ ले गई? नर्क की तरफ ले गई ना! और अभी दिलतख्त सो विश्व के राज्य तख्तनशीन बन गये तो यह आकर्षण स्वर्ग की ओर ले जायेगी। तो एक बार के अनुभवी सदा के लिए समझदार बन गये। टाइटल ही है- ‘‘नालेजफुल''। नालेजफुल कभी धोखा नहीं खा सकते। अच्छा-सभी सदा सन्तुष्ट रहने वाले हो ना? कोई कम्पलेन्ट नहीं। न अपनी न दूसरों की। कम्पलेन्ट है तो कम्पलीट नहीं। अपने प्रति भी कम्पलेन्ट रहती है-योग नहीं लगता, नष्टोमोहा नहीं हैं, जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हैं। तो यह कम्पलेन्ट हुई ना! तो सब कम्पलेन्ट समाप्त अर्थात् कम्पलीट सम्पूर्ण बनना। अच्छा।

बापदादा को तो सदा बच्चों के ऊपर नाज रहता है, यही बच्चे कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। बापदादा हरेक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। बच्चे कभी-कभी अपनी वैल्यु को कम जानते हैं। बाप तो अच्छी तरह से जानते है। कैसा भी बच्चा हो, भले अपने को लास्ट नम्बर में समझता हो, तो भी महान है क्योंकि कोटो में कोई-कोई में भी कोई है। तो करोड़ो में से वह एक भी महान हुआ ना! तो सदा अपनी महानता को जानो इससे महान आत्मा बन फिर देवात्मा बन जायेंगे। नैरोबी वाले कहाँ तक विस्तार करके पहुँचे हैं? नैरोबी में ही बैठे हो या चक्रवर्ता हो? जो स्वयं नहीं उड़ सकते, उन्हों को बल देकर उड़ने वाले हो ना! नैरोबी की विशेषता ही है परिवार के परिवार, छोटे से बड़े तक परिवर्तन हो गये हैं। क्योंकि गुजरात का फाउन्डेशन है। अफ्रीका में भी किन्हों का भाग्य खुला? अफ्रीका में रहते भारतवासी भाग्यवान बनें। थोड़ा सा परिचय का पानी पड़ने से बीज निकल आया। अभी की विशेष सेवा यह हो जो पहले हरेक की आवश्यकता है उसको परखो और परखने के बाद प्राप्ति स्वरूप बन प्राप्ति कराओ। परखने की शक्ति से ही सेवा की सिद्धि हो सकती है। अच्छा।

लण्डन पार्टी- लण्डन निवासी तो हैं ही सेवा के फाउण्डर। लण्डन सेवा का मुख्य स्थान है। सबकी जनर लण्डन के ऊपर है। लण्डन से क्या डायरेक्शन मिलते हैं! तो मेन सेवा का सर्विस स्थान लण्डन हो गया ना! तो लण्डन निवासी हैं विशेष सेवाधारी। ब्राह्मण जीवन का धन्धा ही है सेवा। तो सदा इसी सेवा में बिजी रहते हो? देखो, बिजनेसमैन की बुद्धि में रात को स्वप्न में भी क्या आयेगा? जो बिजनेस होगा वही आयेगा। रात को स्वप्न में भी ग्राहक व चीजे ही दिखाई देंगी। तो आप को स्वप्न में क्या आयेगा? आत्माओं को मालामाल कर रहे हैं। स्वप्न में सेवा, उठते भी सेवा, चलते-फिरते भी सेवा। इसी सेवा के आधार पर स्वयं भी सदा सम्पन्न भरपूर और औरों को भी सदा भरपूर कर सकते हो। हरेक अमूल्य रत्न हो, चाहे लण्डन का राज्य भाग्य एक तरफ रखें, दूसरे तरफ आप लोगों को रखें तो आपका भाग्य ज्यादा है। क्योंकि वह राज्य तो मिट्टी के समान हो जायेगा, आप सदा मूल्यवान हो। सदा बाप के अमूल्य रत्न हो। बापदादा एक-एक रत्न के विशेषता की माला जपते हैं। तो सदा अपने को ऐसी विशेष आत्मा समझकर हर कदम उठाते रहो। अभी सब प्रकार के बोझ समाप्त हो गये हैं ना! अभी पिंजड़े की मैना से उड़ते पंछी हो गये। कण्ठी वाले उड़ने वाले तोते बन गये। पिंजड़े वाले नहीं, बापदादा के गीत गाने वाले। लण्डन निवासी, हिन्दी जानने वालों को पहला चांस मिला है। फिर भी डायरेक्ट मुरली सुनने वाले लकी हो। ट्रान्सलेशन तो नहीं करनी पड़ती। इसको कहेंगे- ‘तवा टू माउथ'। ट्रान्सलेशन होने में फिर भी थोड़ी तो रोटी सूखेगी ना! तो आपका भाग्य अपना है, उन्होंका भाग्य अपना है। तो सभी ऐसे नहीं समझना कि विदेश में विदेशियों की ही महिमा है। आप लोगों का संगठन देखकर यह आत्मायें भी प्रभावित हुई। आप लोग निमित्त हो। फिर भी भारतवासियों को अपने बर्थप्लेस का नशा है। अच्छा।

कुमारों से- कुमार ग्रुप अर्थात् डबल स्वतन्त्र। एक लौकिक जिम्मेवारी से स्वतन्त्र और दूसरा आत्मा सर्व बन्धनों से स्वतन्त्र। माया के बन्धन और लौकिक बन्धन से भी स्वतन्त्र। ऐसे स्वतन्त्र हो ? डबल स्वतन्त्र आत्मायें डबल सेवा भी कर सकती हैं। क्योंकि कुमारों को स्वतन्त्र होने के कारण समय बहुत है। तो समय के खज़ाने से अनेकों को सम्पत्तिवान बना सकते हो। सबसे बड़े से बड़ा खज़ाना संगमयुग का समय है। तो कुमार ग्रुप अर्थात् समय के खज़ाने से सम्पन्न और समय होने के कारण औरों की सेवा में भी सम्पन्न बन सकते हो। सेवा की सबजेक्ट में भी 100 ले सकते हो। सदा बन्धनमुक्त अर्थात् सदा योगयुक्त। संसार ही बाप हो गया ना! कुमारों का संसार क्या हैं? ‘‘बापदादा''। औरों का संसार तो हद में है लेकिन आप लोगों का एक ही बेहद का संसार है। तो सहजयोगी भी हो क्योंकि संसार में ही बुद्धि जायेगी ना! संसार ही बाप है तो बुद्धि बाप में ही जायेगी। तो कुमारों को सहजयोगी बनने की लिफ्ट है।

तो अब अशान्त आत्माओं को शान्ति देना, भटकी हुई आत्माओं को ठिकाना देना, यह बड़े से बड़ा पुण्य करते रहो। जैसे प्यासी आत्मा को पानी पिलाना पुण्य है वैसे यह सेवा करना अर्थात् पुण्य आत्मा बनना। तो किसी भी अशान्त आत्मा को देख तरस आता है ना! रहमदिल बाप के बच्चे हो तो सदा पुण्य का काम करते रहो।

अच्छा!